Trascritto

Tum Sun Toh Rahi Ho Na | Adhure khaton ka kaarvan | Incomplete Letters - 4

9 lug 2024 · 6 min. 55 sec.
Tum Sun Toh Rahi Ho Na | Adhure khaton ka kaarvan | Incomplete Letters - 4
Descrizione

मेरी पारिजात, जीवन का अर्थ है जाना और फिर न आना - जो बताता है की वापस सिर्फ स्मृतियाँ आती हैं शख्स नहीं। पर जाना हो तो बताकर जाना हो...

mostra di più
मेरी पारिजात,
जीवन का अर्थ है जाना और फिर न आना - जो बताता है की वापस सिर्फ स्मृतियाँ आती हैं शख्स नहीं। पर जाना हो तो बताकर जाना हो कमसकम हम उन अंतिम क्षणों को तो जी सकें - मिल सकें एक आखिरी बार और लगा सकें गले बेपरवाह हो दुनिया की पावनदियों से। 
विरह में बिताने के लिए यादों का होना जरूरी है - खूबसूरत पलों को सोचकर कब रोया गया है भला। सो जरूरी है, की हर किसी को नसीब हो वो अंतिम मुलाकात परस्पर बिना किसी शर्त के।
एक - दूसरे की आँखों से बहते आंसुओं की मौजूदगी आवश्यक है उसके बाद बिताए गए पलों के लिए। वो बचाती है इंसान को उस टीस से जो उसको खुदकों कोसने पे मजबूर करती हो। आसूं गवाही देते हैं कि जाना आसान नहीं था वावजूद अपवादों के। किसी को जाने देने से ज्यादा मुश्किल है किसी को रोक न पाना। और भुला पाना तो अत्यंत दुखदायी और असंभव- मैंने जब भी किसी को भूलने की कोशिश की तो उसकी स्मृतियाँ हर बार अपने हिस्से की कमाई लेने वापस आईं।
अंततः यह मान लिया गया कि किसी को भुलाने का कहना महज उससे करा गया एक छलावा है जो ऊपरी तौर पर करा जाता है। हम सभी के अंदर मौजूद है हर वो शख्स जिसको भूलने का प्रयास हम हमेशा से करते आए हैं। तुम कहती थी न की छोड़ो न, अब भूल भी जाओ। भला अब कैसे बताऊँ मैं की वो आँखें जिन्हे देख मैं खोता जाता था - वो हाथ जिन्हे थामे मैं बस घंटों यूंही बैठा रहता था - वो सब भूल जाना मुमकिन तो नहीं। वो चेहरा जिसे देख मेरा हर दिन गुजरता था, वो होंठ जिनपे एक रोज मैंने अपने होंठ रखे थे, वो दिन जब कई सालों के बाद तुमने अपनी बाहें खोल मुझे उन्मे समा लेने दिया था - वो सब भूल जाना मुमकिन तो नहीं। वो माथा जिसे मैंने चूमा था जब और तुम किसी बच्चे की तरह मुस्कुराई थीं, और याद है वो पल जब हाथ पकड़े हमने घुमा था पूरा शहर या वो रात जब मेरे कंधे पे रख सर तुम सोई थीं और मैं बस तुम्हें निहारे जा रहा था। वो पल जब अचानक से तुमने कह दिया की तुम्हें प्रेम है मुझसे और मैंने तो जैसे मानने से ही इनकार कर दिया हो मेरा जवाब पता होते हुए भी।
यह सब आखिर स्मृतियाँ ही तो हैं, देखो न कितनी खूबसूरत है - बिताए गए लम्हे जीये जारहे लम्हों से हमेशा ही खूबसूरत रहे हैं। आदमी हमेशा अतीत में जिया है। जितना सुंदर अतीत था उतना ही अपवाद वर्तमान में है। उन आँखों को अब देख पाना मेरी लकीरों में नहीं है। हमारे होंठों के बीच एक बहुत बड़ी दीवार है जो रोकती है हमे एक दूसरे के दुखों को चूमने से।  वो बाहें जिन्हे खोल तुमने मुझे बुलाया था वो अब बंद हो चुकी हैं। वो शख्स जिसे छू लेना भर सुकून था वो मेरी पहुँच से बहुत दूर जा चुका है - इतना दूर जहां से वापस सिर्फ स्मृतियाँ आती हैं शख्स नहीं।
इन सब से भी ज्यादा उदास है यह ख्याल भर की एक रोज वो आँखें किसी और को देखेंगी, कोई और चूमेगा उन होंठों को, कोई और अपने हाथों में तुम्हारे हाथ ले घूमेगा पूरी कायनात, कोई और छूएगा तुम्हें और कसकर पकड़ेगा अपनी बाहों में, कोई और तुम्हें पास ला रोकेगा कभी न जाने देने के लिए। उसमे और मुझमें कोई ज्यादा अंतर तो नहीं पाओगी तुम - बस इतना की उसको वो सब मिलेगा जिसके स्वप्न मुझे आज भी आते हैं किसी दुखभरी कहानी के तौर पर। वो जिएगा उन सभी क्षणों को जिनकी बस यादें है मेरे पास।
तुम्हारे जाने से कितना कुछ छूट गया है - कितना कुछ है जो मुझे छोड़ना पड़ा है - अब चाहूँ भी तो भरी महफ़िल में तुम्हें आवाज दे अपने पास नहीं बुला सकता, तुम्हारा हाथ थाम तुम्हें छू नहीं सकता, तुम्हारी बिखरी हुई जुल्फों को किनारे नहीं कर सकता, तुम्हें बुला तुम्हारे साथ बैठ बातें नहीं कर सकता, तुम्हें अपना नहीं कह सकता, पर एक चीज है जो अब भी कर सकता हूँ और वो है अथाह प्रेम अनंत काल के लिए।
तुम्हारे जाने से सिर्फ एक रिश्ता है जो खत्म हुया है प्रेम नहीं। प्रेम तो यात्राओं को पार कर वहीं बैठा मिलेगा तुम्हें; जब तुम सब जीकर वापस लौटोगी। वैसे तो पता है मुझे और तुमने भी कहा है की तुम नहीं आओगी - पर प्रेम तो किसी अबोध बालक की तरह मासूम होता है जो जिद किए बैठा है की तभी जाएगा जब तुम आओगी। पर तुम उसके झांसे में मत आना, बाद तुम्हारे आने के भी यह नहीं जाएगा।
मैं प्रेम में हारा हुया यात्री हूँ जो कविताओं में अपना गुजारा करता है। मुझे उम्मीद है की हकीकत में न सही पर एक रोज कविताओं में तुम जरूर उतरोगी और लगाओगी कसकर गले - आखिर थक भी गया हूँ मैं बहुत, काफी देर चला हूँ बहुत बोझ लेकर। इस बोझ को किनारे रख हम बैठेंगे किसी सरोवर के पास, तुम्हारा सर फिर मेरे कंधे पे होगा, हाथ हाथों में, और मैं तुम्हारे बाल संवार बस खामोश बैठा हूँगा। तुमसे जितनी बातें करनी थी वो सब तो मैंने अपनी कविताओं में ही कर ली हैं, वो खत जो तुम तक कभी न पहुंचे उन्ही में लिख रखा है मैंने अपना पता मुझतक पहुँचने का। मैं भी काफी वक्त से ढूंढ रहा हूँ, अगर तुम आओ तो मुझे भी ढूंढ लेना एक बार - मैं खो गया हूँ कहीं जाने किस रोज उठूँगा पार इस दुनिया के और बस रह जाऊंगा वीरानी में।
यूं तो तुम तक पहुँच पाना ज्यादा आसान है वजाय मुझको ढूंढ लिए जाने के, पर मैं अपने किए वादों की बेड़ीयों में जकड़ा हुआ है जिसे अब सिर्फ तुम खोल सकती हो - पर मैं आजाद नहीं होना चाहता बस चाहता हूँ की तुम आओ पास मेरे और समीप बैठ सको। मैं देख सकूँ तुम्हें तुम्हारी आँखों में, और जी सकूँ हर एक पल को जैसे की बस वो ही एक आखिरी हो।
कुछ पूछना है तुमसे, जब पुकारता हूँ तुमको क्या वो चीख इतनी दूर तुम तलक पहुच पाती है या मुझे देना होगा और जोर? क्या तुम सुन पाती हो मेरी करुण वेदनाओं को , क्या तुम तक पहुचती है मेरे शरीर पर हुए घावों की खबर? नहीं, यह किसी चोट से नहीं हुए, न ही किसी बीमारे से, यह हुए हैं वक्त की रगड़ से, जो चीरकर निकला है मेरे अंतर्मन को। इस जख्म को स्मृतियाँ रोज कुरेदती हैं, इसमे दुख और पीड़ा का मवाद हर रोज निकलता है, चरागरों ने कई बार कोशिश करी इसे सांत्वना से भरने की, पर इसपर तो सिर्फ प्रेम का मरहम लगाया जा सकता है - सो लाजिम है की जख्म अब भी खुला हुआ है और बढ़ता जा रहा है।
नहीं, मैं यह नहीं कहता की तुम इसे सुन मुझ तक आ पहुँचो, यकीनन तुम्हारे लिए भी उतना ही मुश्किल होगा जाना जितना की मेरे लिए था तुम्हें न रोक पाना। वैसे इसका कोई उपाय भी नहीं है, मैं बिना यह सोचे लिखे जा रहा हूँ कवितायें, गीत, नज़्में, ग़ज़ले और भी बहुत कुछ जो भी मुझसे लिखा जा रहा है। उन सभी में बस पुकार है तुम्हें बुला लाने की, तुम्हारे आ जाने का इंतेजार सदियों से कैद है मेरी कलम में। पर अब लगता है की शब्द सिर्फ महफिलों में दिल बहला सकते हैं, वाह बटोर सकते हैं, पर किसी जाए हुए को वापस नहीं ला सकते। पर तुम्हारा आना भी उतना ही जरूरी है जितना की मेरा लिख तुम्हें पुकारना।
देखो, प्रेम में किसी को ऐसे इंतेजार नहीं कराया जाता, या तो आओ और तोड़ दो मेरे हाथों से चलती कलम  और जला जाओ यहाँ रखें सभी कागज-किताब या फिर आओ और रह जाओ पास यहीं। जो प्रेम कहानियाँ अधूरी रह जाती हैं - वो सदियों तक याद रखी जाती हैं। पर मुझे बेहद डर लगता है मुझको याद रखे जाने से, मैं नहीं बनना चाहता कोई दुखदाई कहानी का हिस्सा जिसे सुन लोगों को अपने खोए हुए लोगों की याद आए। रोक लो ऐसा होने से, शायद कोई नई कहानी लिखी जाने से बच जाए।
यूं तो शुरुआत "मेरी पारिजात" से हुई थी, पर किस हद तक तुम्हें "मेरा" कहना सही है, यह कहना मुश्किल है। जहां एक ओर तुम्हें अपना कहने में दिल को मिलता सुकून है की जहां में आज भी कोई जगह ऐसी है जहां तुम सिर्फ मेरे हो, वहीं दूसरी ओर एक पीड़ादायक एहसास भी कि अब सिर्फ स्मृतियाँ बची हैं और हकीकत उससे कोसों दूर कहीं सिसक रही है। लिखने को तो मुझे कोई प्रेमी या कवि लिखा जाना चाहिए, पर मैं चाहूँगा सिर्फ एक ही सम्बोधन:
सदा तुम्हारा
मयंक
_______________________________________________________________________________

क्या आप अपनी कविता या कथा हमारे पॉडकास्ट में प्रमुख रूप से प्रस्तुत करना चाहते है?
निश्चिंत रहें, इस सेवा के लिए कोई शुल्क नहीं है।

अपने अनुरोध इस ईमेल पर जमा करें: contactgeniuswords@gmail.com
या फिर इंस्टाग्राम पर: क्लिक करें
-------------------------------------------------------------------------

Reach out to Mayank Gangwar: click here
To know more about Mayank Gangwar: click here
mostra meno
Informazioni
Autore Mayank Gangwar
Organizzazione Mayank Gangwar
Sito -
Tag

Sembra che non tu non abbia alcun episodio attivo

Sfoglia il catalogo di Spreaker per scoprire nuovi contenuti

Corrente

Copertina del podcast

Sembra che non ci sia nessun episodio nella tua coda

Sfoglia il catalogo di Spreaker per scoprire nuovi contenuti

Successivo

Copertina dell'episodio Copertina dell'episodio

Che silenzio che c’è...

È tempo di scoprire nuovi episodi!

Scopri
La tua Libreria
Cerca