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Spoken word poetry in Hindi by Lokesh Gulyani

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19 FEB 2025 · मुझे क्या कभी मौका मिलेगा कि मैं अपने हाथ फैला कर नीचे वादियों में कूद जाऊं और मुझे अंजाम की चिंता न हो। नीचे सूरजमुखी के फूलों से भरा मैदान हो, फूल मुझे देखते हुए मुस्कुरा रहे हों। बाहें फैला कर खड़े हों। और मैं उनके ऊपर से उड़ता चला जा रहा हूं, एक बड़ी चील की मानिंद।
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13 FEB 2025 · मैं समय ख़राब करता हूं, पूरे अधिकार से। मुझे लगता है कि किसी ने मेरा समय ख़रीद कर मुझे ही पकड़ा दिया है, नौकरी की शक्ल में। मालिक बार बार यकीं दिलाता है कि उसने सिर्फ़ समय खरीदा है मुझे नहीं। मैं भी खुद को यह दिलासा देता हूं कि सिर्फ़ समय बिका है, मैं नहीं।
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28 GEN 2025 · हम साथ बैठ कर देखी हुई फ़िल्म दुबारा देखते हैं। तुम्हें ठीक-ठीक पता है कि अगले कुछ क्षणों बाद प्रेमी, प्रेमिका का चुम्बन लेगा। तुम अपना हाथ, मेरे हाथ पर रखने का सायास प्रयास, अनायास करती हो। मैं पॉपकॉर्न निकालने के लिए अपनी हथेली को अनायास तुम्हारी हथेली से सायास बाहर को सरकाता हूँ। हम दोनों चौंकने का नाटक करते हैं, फ़िल्म चलती रहती है।
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9 GEN 2025 · मैं घर पर आकर अपना कोट उतार कर खूंटी पर टांग देता हूं। असल में मैं, ख़ुद ही वहां उस कोट के साथ टंग जाना चाहता हूं पर घर में मेरे लिए इतनी जगह मयस्सर नहीं है।
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18 DIC 2024 · सुबह उठने के साथ ही यही एक मात्र चिंता कि मैं दिख नहीं रहा, मैं बिक नहीं रहा, FoMo का शिकार मैं, गैलरी खंगाल कर एक पोस्ट का इक़बाल बुलंद करता हूं। मेरे वजूद के लिए चलो कोई तो लड़ रहा है। अब मेरी ओर झांकोगे तो मुझे भी जिंदा पाओगे।
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13 DIC 2024 · जब तुम ठुकरा देते हो, एक गोल रोटी को, तो तुम ठुकरा देते हो बहुत से लोगों की मेहनत।
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29 NOV 2024 · मैं गिरता जा रहा हूँ, साल दर साल। झुकी नज़रें, झुकी कमर, एक झुका हुआ इंसान। कोई प्रतिक्रिया देने में इच्छुक नहीं, दुनियां जाए भाड़ में। जीभ पर फैला कड़वापन कुछ भी बोलने से रोकता है। बोलूंगा तो वो तीखा ही होगा।
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29 NOV 2024 · जिस दिन मालिक घिसाई को नीलम दे देता, उसे ख़ुद की सुध बुध न रहती, उसकी हालत, देसी दारू के ठेके के बाहर उकडू बैठे, दारुड़ियो सी हो जाती।
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29 NOV 2024 · कुछ टिकट मेरे जीवन में धरे के धरे रह गए। उन पर मैने यात्रा नहीं की। कभी–कभी सोचता हूं यदि कर ली होती तो जीवन क्या होता? क्या मैं वही आदमी रहता जो अब हूं?
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29 NOV 2024 · कुछ अजीब प्यार है अपना। जो तुम्हारे आते ही ऑटो के मीटर सा डाउन हो जाता है। तुम जल्द चले जाओगे, बस यही सोचता चला जाता है।
Spoken word poetry in Hindi by Lokesh Gulyani
Informazioni
Autore | Lokesh Gulyani |
Organizzazione | Lokesh Gulyani |
Categorie | Filosofia |
Sito | - |
lokesh.gulyani@yahoo.in |
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